उसका जन्म 8 मई 1786 में एक गरीब परिवार में हुआ...
बचपन से ही वह पढ़ाई में कमजोर था...
वह एक पुरोहित बनाना चाहता था,
लेकिन लेकिन गुरुकुल की प्रवेश परीक्षा में असफल हो गया...
कई बार उसे पुरोहित बनने से नकार दिया,
लेकिन उसने प्रार्थना को अपने जीवन का आधार बनाया...
13 अगस्त 1815 को वह एक काथलिक पुरोहित बना..
1818 में उसे एक ऐसी पल्ली का पल्लीपुरोहित बनाया
जहाँ के लोगों में नैतिकता और विश्वास का कोई
नामो-निशान ही नहीं था...
उसने कुछ ही समय में अपनी प्रार्थनाओ और त्यागमय जीवन द्वारा,
कई भटकी आत्माओं को प्रभु की शरण में लाया...
बुरे लोग उससे नफरत करते थे...
उबले हुए आलू उसका भोजन था..
वह 18 घंटे पापस्विकार संस्कार में बिताता था...
कुछ ही समय में दुनिया के कोने-कोने से लोग उसके पास आने लगे...
इस छोटे से गाँव की काया पलट दी..
उसके जीवन में प्रभु ने अनेक चमत्कार किये..
... और 4 अगस्त 1859 को वह परलोक में चला गया...
वहाँ से आज भी वह आत्माओं की मुक्ति के लिये सदा प्रार्थना करता है...
वह और कोई नहीं... बल्कि महान संत योहन मरिया वियान्नी है,
जिसका पर्व आज माता कलीसिया मनाती है...
सभी को इस पर्व की हार्दिक शुभकामनायें...!!!